कब निकला, कब डूबा चाँद

कब निकला, कब डूबा चाँद शहर में किसने देखा चाँद   जाने किस ग़म में तिल-तिल रोज़ पिघलता रहता चाँद   सोच रहा हर इक मुफ़लिस काश रुपैया होता चाँद   करवा-चौथ को होता है सबका अपना-अपना चाँद   नभ-सरिता में तैर रहा कश्ती बनकर आधा चाँद